“Tandoor Kaand: नैना साहनी मर्डर केस की पूरी कहानी, जिसमें रिश्तों में अस्थिरता, अविश्वास और एक क्रूर हत्या का खौफनाक सच उजागर होता है।”
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परिचय
जब भी भारत के सबसे चर्चित हत्याकांडों की चर्चा होती है, तो तंदूर कांड का नाम जरूर लिया जाता है। इसे नैना साहनी मर्डर केस के नाम से भी जाना जाता है। इस केस की वजह से चर्चा का विषय हत्या का तरीका बना, जो अत्यंत क्रूर और चौंकाने वाला था। यह कहानी न केवल हत्या के कारणों को उजागर करती है, बल्कि पुलिस जांच की पेचीदगियों को भी सामने लाती है। आइए जानते हैं तंदूर कांड (Tandoor Kaand) की पूरी कहानी।
घटना की शुरुआत
2 जुलाई 1985 की रात लगभग 11 बजे, दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल अब्दुल नाजिर कुंज और होमगार्ड चंद्रपाल गश्ती पर निकले थे। अचानक उनकी नजर एक महिला पर पड़ी, जो जोर-जोर से “आग! आग!” चिल्ला रही थी। यह महिला इलाके में सब्जी बेचने का काम करती थी। जब पुलिस जवान उस महिला के पास पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि अशोक यात्री निवास होटल से तेज लपटें उठ रही हैं।
पुलिस ने तुरंत फायर ब्रिगेड को सूचना दी और आग लगने के कारणों का पता लगाने के लिए होटल के मैनेजर केशव कुमार से पूछताछ की। केशव ने बताया कि रेस्टोरेंट में पुराने पोस्टर जलाए जा रहे हैं। लेकिन पुलिस को शक हुआ और एक कांस्टेबल ने रेस्टोरेंट के पीछे की दीवार फांदकर अंदर जाने का निर्णय लिया।
खौफनाक खोज
जब कांस्टेबल ने रेस्टोरेंट के किचन में प्रवेश किया, तो उसने देखा कि कुछ लोग बकरा भूनने की बात कर रहे थे। लेकिन कांस्टेबल की नजर एक इंसानी हाथ पर पड़ी, जिससे वह समझ गया कि मामला कुछ और है। पुलिस ने तुरंत मौके पर आकर केशव कुमार को पकड़ लिया। आग बुझाने पर तंदूर के ऊपर एक जलती हुई लाश मिली, जिसका चेहरा पहचानने लायक नहीं था।
नैना साहनी का खुलासा
तंदूर के ऊपर मिली लाश नैना साहनी की थी, जो रेस्टोरेंट के मालिक सुशील शर्मा की पत्नी थीं। सुशील शर्मा, जो दिल्ली यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष थे, फरार हो गए। इस हत्या की खबर मीडिया में फैल गई, जिससे जनता में आक्रोश पैदा हुआ। पुलिस ने सुशील शर्मा की तलाश शुरू की, लेकिन वह एक हफ्ते तक पकड़ में नहीं आए।
सुशील शर्मा की गिरफ्तारी
10 जुलाई 1995 को दिल्ली पुलिस ने सुशील शर्मा को बेंगलुरु से गिरफ्तार किया। सुशील की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ। पूछताछ में पता चला कि नैना और सुशील की मुलाकात कांग्रेस पार्टी में हुई थी। दोनों ने एक-दूसरे से प्यार किया और एक साथ रहने लगे, लेकिन उनकी जिंदगी में कई समस्याएं आ गईं।
रिश्ते में खटास
जैसे-जैसे समय बीतने लगा, नैना का ध्यान सुशील की ओर से कम होने लगा। नैना अपने पुराने क्लासमेट मतलू करीम के करीब आने लगीं, जिससे सुशील को शक होने लगा। इस कारण दोनों के बीच झगड़े बढ़ते गए। 2 जुलाई 1985 की रात को एक ऐसी स्थिति बनी, जहां दोनों में तीखी बहस हुई।
हत्या का दिन
सुशील के अनुसार, नैना ने आत्महत्या की धमकी दी और एक सुसाइड नोट भी लिखा। लेकिन बहस के दौरान, सुशील ने गुस्से में आकर नैना को गोली मार दी। नैना पर एक के बाद एक तीन गोलियां चलाईं, जिससे वह तुरंत गिर गई। इसके बाद सुशील ने नैना की लाश को ठिकाने लगाने का फैसला किया।
शव को ठिकाने लगाने की कोशिश
सुशील ने नैना की लाश को पॉलिथीन में लपेटकर बेडशीट में डाल दिया। लेकिन उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि लाश का क्या किया जाए। फिर उसने आईटीओ पुल पर लाश फेंकने का सोचा, लेकिन वहां भीड़ होने की वजह से वह सफल नहीं हो सका।
अंततः, उसने अपने बगिया रेस्टोरेंट में जाकर अपने मैनेजर केशव कुमार से मदद मांगी। दोनों ने मिलकर नैना की लाश को तंदूर में डालने का निर्णय लिया। पहले तंदूर की मामूली आग में लाश को जलाने की कोशिश की, लेकिन वह पूरी तरह से जल नहीं पाई।
तंदूर में आग लगाने का खौफनाक तरीका
सुशील ने केशव को तंदूर में पुराने कागज डालने के लिए कहा ताकि आग बढ़ सके। इसके बाद दोनों ने बटर के पैकेट डालकर आग को भड़काया। लेकिन इस बार आग इतनी तेज हो गई कि लपटें आसमान तक उठने लगीं। एक पड़ोसी ने आग की सूचना पुलिस को दी।
पुलिस की कार्रवाई( Tandoor Kaand )
पुलिस ने तुरंत तंदूर कांड ( की जांच शुरू की और सुशील के बयान के आधार पर उसकी गिरफ्तारी हुई। दिल्ली डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने सुशील पर हत्या और सबूत मिटाने के आरोप लगाए। इसके बाद केस की सुनवाई शुरू हुई।
न्याय का इंतजार
2001 में इस केस में कई वकील सुशील का केस लड़ने से मना कर चुके थे। अंततः, 3 नवंबर 2003 को सुशील शर्मा को नैना साहनी की हत्या का दोषी करार दिया गया और उसे मौत की सजा सुनाई गई।
निष्कर्ष ( Tandoor Kaand )
तंदूर कांड (Tandoor Kaand) न केवल एक दिल दहलाने वाली हत्या की कहानी है, बल्कि यह उस समय की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को भी दर्शाता है। यह मामला अब भी भारतीय न्याय प्रणाली और मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। नैना साहनी की हत्या का यह मामला हमेशा याद रखा जाएगा, क्योंकि यह एक ऐसे रिश्ते की कहानी है, जो गहराई में जाकर हत्या का कारण बन गई।
यह कहानी न केवल हत्याकांड की भयावहता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि रिश्तों में अस्थिरता और अविश्वास कितने खतरनाक साबित हो सकते हैं। तंदूर कांड (Tandoor Kaand) आज भी समाज के लिए एक चेतावनी है कि प्रेम और विश्वास की कमी कभी-कभी कितनी गंभीर परिणाम ला सकती है।