“मध्य प्रदेश के सागर जिले में दलित परिवार की त्रासदी: तीन हत्याएं, छेड़खानी, और जातिगत हिंसा की सच्चाई उजागर करती कहानी।”
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मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक दलित परिवार के साथ हुई घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि हमारे समाज में जातिगत भेदभाव, हिंसा और असमानता की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है। यह दर्दनाक कहानी उस समय शुरू हुई जब 2019 में इस दलित परिवार की बेटी के साथ छेड़छाड़ हुई। समय के साथ इस विवाद ने हिंसक रूप ले लिया और एक-एक कर इस परिवार के तीन लोगों की हत्या कर दी गई।
इस ब्लॉग में हम इस मामले की पूरी कहानी, इसकी पृष्ठभूमि, परिवार पर हुए अत्याचारों, राजीनामा की धमकियों, राजनीतिक दखल, और अंततः न्याय की लड़ाई पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
2019: एक दलित लड़की के साथ छेड़खानी की घटना से शुरुआत
यह घटना साल 2019 में मध्य प्रदेश के सागर जिले के बड़ोदिया गांव में हुई। पीड़िता, जो कि एक दलित परिवार से थी, उस समय अपने घर लौट रही थी, जब कुछ उच्च जाति के लोगों ने उसके साथ छेड़खानी और बदसलूकी की। आरोपियों में विक्रम सिंह ठाकुर, पुष्पेंद्र ठाकुर, अंकित ठाकुर, विशाल ठाकुर और छोटू रखवार शामिल थे। इन लोगों ने न सिर्फ पीड़िता के साथ छेड़खानी की, बल्कि उसे धमकी भी दी कि यदि उसने इस घटना के बारे में किसी को बताया, तो उसकी जान ले ली जाएगी।
परिवार की प्रतिक्रिया: भाई की बहादुरी और हिंसा की शुरुआत
जब पीड़िता ने इस घटना के बारे में अपने परिवार को बताया, तो उसका भाई नितिन इस अन्याय को सहन नहीं कर पाया। उसने आरोपियों से मिलकर इस बारे में बात करने का फैसला किया। लेकिन यह निर्णय उसके लिए और उसके परिवार के लिए घातक साबित हुआ। जब नितिन ने इन लोगों से बात की, तो उन्होंने उसे बुरी तरह पीटा और उसकी हत्या करने की धमकी दी। परिवार को धमकियां मिलने लगीं, लेकिन उन्होंने हार मानने से इनकार कर दिया।
अदालत और राजीनामे का दबाव: नितिन की हत्या
इस बीच, परिवार ने न्याय की लड़ाई लड़ने का फैसला किया और छेड़खानी के मामले में आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई। लेकिन न्याय की उम्मीद रखने के बजाय, परिवार को और भी ज्यादा प्रताड़ना और अत्याचारों का सामना करना पड़ा। आरोपियों ने राजीनामे के लिए परिवार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया।
2023 में, जब परिवार ने राजीनामे से इनकार कर दिया, तो आरोपियों ने नितिन की बेरहमी से पिटाई कर दी। यह घटना उस समय घटी जब नितिन बाजार से सब्जी लेकर लौट रहा था। आरोपियों ने उसे बीच रास्ते में घेरकर पीटना शुरू कर दिया, और जब वह भागने की कोशिश कर रहा था, तो उसे और भी लोगों ने पकड़कर पीटा। इस दौरान उसकी मां और बहन भी मौके पर पहुंची, लेकिन आरोपियों ने उनकी भी पिटाई की।
नितिन को इस तरह मारा गया कि वह जमीन पर बेहोश होकर गिर पड़ा। उसकी सांसें उखड़ रही थीं, लेकिन आरोपियों ने उसे पीटना बंद नहीं किया। आखिरकार, नितिन की मौत हो गई, और यह घटना रक्षाबंधन के त्योहार से ठीक पहले हुई, जो भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक है।
दलित परिवार के राजेंद्र अहिरवार की हत्या: चाचा भी नहीं बचे
नितिन की हत्या के बाद, पीड़िता और उसका परिवार न्याय के लिए संघर्ष करते रहे। इस दौरान परिवार के चाचा, राजेंद्र अहिरवार, जो कि नितिन की हत्या के गवाह थे, पर भी हमला हुआ। 25 मई 2024 को, राजेंद्र को आरोपियों में से एक, पप्पू रजक ने अपने घर बुलाया। वहां, राजेंद्र पर जानलेवा हमला किया गया, और उन्हें बुरी तरह मारा गया। राजेंद्र की हालत इतनी गंभीर हो गई कि अस्पताल जाते वक्त उनकी भी मौत हो गई।
दलित परिवार पर जारी अत्याचार: पीड़िता की दर्दनाक आत्महत्या
इस दिल दहलाने वाली घटना के बाद, परिवार पूरी तरह टूट चुका था। नितिन की हत्या और फिर राजेंद्र की मौत ने पीड़िता और उसके परिवार को सदमे में डाल दिया। 26 मई 2024 को, जब राजेंद्र के शव को पोस्टमार्टम के बाद गांव वापस लाया जा रहा था, पीड़िता भी एंबुलेंस में थी। पुलिस के मुताबिक, एंबुलेंस में बैठे-बैठे पीड़िता ने अचानक दरवाजा खोला और छलांग लगा दी। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पीड़िता की मौत हो गई, और इस पूरे मामले में यह तीसरी हत्या थी।
राजीनामे का दबाव: जातिगत हिंसा की जड़ें
इस पूरे मामले में राजीनामे का मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण है। जब परिवार ने आरोपियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई, तो उन्हें लगातार राजीनामा करने के लिए धमकाया गया। राजीनामा करने का मतलब था कि परिवार को न्याय की लड़ाई छोड़नी होगी और आरोपियों को माफ करना होगा। लेकिन परिवार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, जिसके चलते उन्हें लगातार हिंसा और प्रताड़ना का सामना करना पड़ा।
राजनीतिक हस्तक्षेप: दिग्विजय सिंह और प्रियंका गांधी की प्रतिक्रियाएं
घटना के बाद, इस मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पीड़िता के परिवार से मुलाकात की और उन्हें न्याय दिलाने का आश्वासन दिया। उन्होंने पीड़िता की मां को बहन मानकर राखी भी बांधी और इस घटना पर धरना भी दिया। हालांकि, आरोपियों को कुछ ही दिनों में जमानत मिल गई, जिससे परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंता और बढ़ गई।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर इस घटना की निंदा करते हुए कहा कि यह घटना दिल दहलाने वाली है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार दलितों, महिलाओं और पिछड़े वर्गों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। राहुल गांधी ने भी इस घटना पर दुख जताते हुए कहा कि मध्य प्रदेश में कानून-व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है और दलित परिवार के साथ जो हुआ, वह बेहद पीड़ादायक है।
समाज में दलित उत्पीड़न की गहरी जड़ें
यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज में जातिगत भेदभाव और हिंसा की गहरी जड़ों की ओर इशारा करती है। दलितों और पिछड़े वर्गों के साथ होने वाले अत्याचार और उनके खिलाफ हो रहे भेदभाव के मामलों में अक्सर न्याय की प्रक्रिया बेहद धीमी होती है।
जातिगत भेदभाव से जुड़े मामलों में अक्सर दबाव, धमकियां और हिंसा देखने को मिलती हैं। इस घटना में भी यही देखने को मिला कि कैसे राजीनामे का दबाव डालकर परिवार को चुप कराने की कोशिश की गई, और जब परिवार ने हार नहीं मानी, तो उन्हें हिंसा और हत्या का सामना करना पड़ा।
पुलिस की कार्रवाई पर सवाल
इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। पीड़िता और उसके परिवार ने बार-बार पुलिस से सुरक्षा की मांग की, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार किया, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। इस दौरान, परिवार को लगातार धमकियां मिलती रहीं, और अंततः परिवार के तीन सदस्यों की हत्या हो गई।
निष्कर्ष: एक दलित परिवार की त्रासदी और समाज का आईना
यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि हमारे समाज की स्थिति का भी आईना है। जातिगत हिंसा और भेदभाव आज भी हमारे समाज में एक बड़ी समस्या बनी हुई है। जब तक समाज और कानून मिलकर इन अत्याचारों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाएंगे, तब तक ऐसे मामले होते रहेंगे।
यह मामला केवल न्याय की मांग नहीं करता, बल्कि हमारे समाज की उस सोच पर सवाल उठाता है, जो आज भी जातिगत आधार पर भेदभाव और हिंसा को जन्म देती है। अब समय आ गया है कि हम इन मुद्दों पर गंभीरता से सोचें और समाज में जातिगत असमानता को खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाएं।
आपका इस घटना पर क्या विचार है? क्या आप मानते हैं कि जातिगत हिंसा और भेदभाव के खिलाफ समाज को और अधिक सख्त कदम उठाने चाहिए? अपने सुझाव और राय कमेंट सेक्शन में साझा करें।