सीमा गावित और रेणुका शिंदे की खौफनाक कहानी, जिन्होंने 42 बच्चों का अपहरण कर उन्हें बेरहमी से मारा, यह भारतीय अपराध जगत की सबसे भयावह घटना है।
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भारतीय अपराध जगत में बहुत सी दिल दहला देने वाली घटनाएँ घट चुकी हैं, लेकिन सीमा गावित और रेणुका शिंदे की कहानी इनमें से सबसे भयावह है। ये दोनों बहनें अपनी माँ अंजना बाई के साथ मिलकर निर्दोष बच्चों की हत्या करती थीं, और इसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस गैंग ने छह सालों के अंदर 42 बच्चों का अपहरण कर उनकी निर्मम हत्या की थी। इस ब्लॉग में हम इन तीन महिलाओं की खौफनाक कहानी विस्तार से जानेंगे।
अपराध की शुरुआत
यह कहानी शुरू होती है 1973 से, जब अंजना बाई नाम की एक महिला ने चोरी का रास्ता अपनाया। अंजना का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, और कम उम्र से ही उसने चोरी करना शुरू कर दिया। उसकी पहली शादी एक ट्रक ड्राइवर से हुई, जिससे उसकी पहली बेटी रेणुका का जन्म हुआ। कुछ समय बाद उसके पति ने उसे छोड़ दिया और दूसरी शादी कर ली, जिससे अंजना अकेली रह गई। पैसे कमाने के लिए उसने फिर से चोरी का सहारा लिया और अपनी बेटियों रेणुका और सीमा को भी इस अपराध की दुनिया में धकेल दिया।
सीमा गावित और रेणुका शिंदे की शातिर योजना
रेणुका और सीमा को बचपन से ही अपनी मां के साथ अपराधों में शामिल होना पड़ा। चोरी, जेबतराशी और छोटे-मोटे अपराध उनके लिए आम हो गए थे। एक बार, जब रेणुका चोरी करते हुए पकड़ी गई, तो उसने अपने छोटे बेटे का सहारा लिया और कहा कि “मैं एक मां हूँ, मैं चोरी कैसे कर सकती हूँ?” लोगों ने उस पर विश्वास किया और उसे छोड़ दिया। इस घटना से रेणुका को समझ में आया कि बच्चों का इस्तेमाल करके वे चोरी के मामलों से आसानी से बच सकती हैं। यही वह क्षण था, जब उनके अपराध का असली रूप सामने आया।
बच्चों का अपहरण और हत्या
1990 के दशक में, इन तीनों महिलाओं ने बच्चों को किडनैप करना शुरू कर दिया। वे खासकर गरीब तबके के बच्चों को निशाना बनाती थीं, जिनके गायब होने पर कोई तुरंत रिपोर्ट नहीं करता था। बच्चे चोरी करके वे उन्हें अपने साथ रखती थीं और फिर उनका इस्तेमाल चोरी और अन्य अपराधों में करती थीं। जब भी पकड़ी जातीं, तो बच्चों को चोटिल कर या पटक कर लोगों का ध्यान भटका देतीं, ताकि वे आसानी से भाग सकें।
हर बार, इन तीनों का अपराध और क्रूरता बढ़ती ही गई। 18 महीने के बच्चों से लेकर 4 साल तक के मासूम बच्चों को ये तीनों मां-बेटी अपहरण कर उनके साथ बेरहमी से पेश आती थीं। एक बार, रेणुका ने एक बच्चे को इतना जोर से बिजली के खंभे पर मारा कि उसकी मौत हो गई। इन बच्चों को वे सिर्फ अपने अपराधों से बचने के लिए इस्तेमाल करती थीं, और अंत में उन्हें मार डालती थीं।
पुलिस की निष्क्रियता और खुलासा
यह मामला उस समय और भयानक हो गया, जब यह पता चला कि छह साल तक इन तीनों महिलाओं ने अपने अपराधों को बिना किसी डर के अंजाम दिया। पुलिस को पहली बार 1996 में इनकी क्रूरता का पता चला, जब सीमा और रेणुका की सौतेली बहन की हत्या की रिपोर्ट दर्ज की गई। इस घटना के बाद पुलिस ने इन तीनों महिलाओं की तलाश शुरू की, और आखिरकार नवंबर 1996 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
पुलिस पूछताछ और अपराध का कबूलनामा
गिरफ्तारी के बाद भी ये तीनों महिलाएं अपने गुनाहों को स्वीकार नहीं कर रही थीं। लेकिन रेणुका के पति किरण शिंदे, जो इन अपराधों में शामिल नहीं था, ने सरकारी गवाह बनकर पूरा सच बताया। पुलिस की सख्त पूछताछ के बाद आखिरकार रेणुका, सीमा और उनकी मां अंजना बाई ने अपने अपराध कबूल किए। उन्होंने बताया कि उन्होंने 42 बच्चों का अपहरण किया और उनमें से कई को बेरहमी से मार डाला। पुलिस ने इनके घर से बच्चों के कपड़े और हत्या के सबूत भी बरामद किए।
कोर्ट का फैसला और सजा(सीमा गावित रेणुका शिंदे)
इन अपराधों के लिए तीनों पर केस चला, लेकिन सुनवाई के दौरान अंजना बाई की जेल में ही मौत हो गई। इसके बाद रेणुका और सीमा पर 13 बच्चों के अपहरण और 6 बच्चों की हत्या का आरोप साबित हुआ। 2001 में पुणे की सेशन कोर्ट ने दोनों बहनों को फांसी की सजा सुनाई। इस फैसले को मुंबई हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा। उन्होंने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका भी दायर की, जिसे 2014 में खारिज कर दिया गया।
आखिरी फैसला (सीमा गावित रेणुका शिंदे)
लंबी कानूनी प्रक्रिया और सुनवाई के बाद, जनवरी 2022 में मुंबई हाईकोर्ट ने दोनों बहनों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। अब ये दोनों बहने पुणे की यरवदा जेल में अपनी सजा काट रही हैं।
समाज और पुलिस की नाकामी
इस मामले में एक अहम सवाल उठता है: इतने बच्चों के गायब होने के बावजूद पुलिस ने इतनी देर से कार्रवाई क्यों की? जिन बच्चों का अपहरण हुआ था, वे सभी गरीब परिवारों से थे। इस वजह से शायद उनके गायब होने पर पुलिस ने तुरंत कार्रवाई नहीं की। अगर पुलिस ने समय पर सतर्कता दिखाई होती, तो शायद इतने मासूमों की जान बचाई जा सकती थी।
निष्कर्ष
सीमा गावित और रेणुका शिंदे की यह कहानी न केवल भारतीय अपराध जगत की सबसे घिनौनी कहानियों में से एक है, बल्कि यह समाज और पुलिस तंत्र की नाकामी को भी उजागर करती है। इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया कि आखिर कैसे एक मां और उसकी बेटियां इतने निर्दयी हो सकती हैं कि मासूम बच्चों की जान लेने से भी नहीं हिचकिचातीं?